सोमवार, 15 नवंबर 2021

सजल 🌴


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समांत : अंचित।

पदांत  :    है।

मात्राभार:16.

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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शब्द -  शब्द  पट   पर  मंचित है।

जो  न   जानता  वह   वंचित  है।।


खेल   हो     रहे   नित्य   हजारों,

क्यों  मानव  का  उर  कुंचित है।


जिसका  हृदय विशाल सिंधु- सा,

उससे  नभ ,  धरती    सिंचित है।


शूकर  की  दुनिया   चहला तक,

दिखता  नर  ऐसा     लुंचित  है।


ज्ञान   नहीं    बाहर    से  आता,

अंतर   से   ही    अभिवंदित  है।


क्या  घमंड   इस     रूप-मृदा का,

जल  जाता   तन   से   वंचित  है।


'शुभम'   ज्ञान   का   गर्व  न करना,

जो  करता   रहता    किंचित   है।


चहला=कीचड़।


🪴 शुभमस्तु !


१५.११.२०२१◆२.१५

पतनम मार्तण्डस्य।


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