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समांत : अंचित।
पदांत : है।
मात्राभार:16.
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्द - शब्द पट पर मंचित है।
जो न जानता वह वंचित है।।
खेल हो रहे नित्य हजारों,
क्यों मानव का उर कुंचित है।
जिसका हृदय विशाल सिंधु- सा,
उससे नभ , धरती सिंचित है।
शूकर की दुनिया चहला तक,
दिखता नर ऐसा लुंचित है।
ज्ञान नहीं बाहर से आता,
अंतर से ही अभिवंदित है।
क्या घमंड इस रूप-मृदा का,
जल जाता तन से वंचित है।
'शुभम' ज्ञान का गर्व न करना,
जो करता रहता किंचित है।
चहला=कीचड़।
🪴 शुभमस्तु !
१५.११.२०२१◆२.१५
पतनम मार्तण्डस्य।
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