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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कर्मों का मंदिर मानव -तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।
कर्मदेव की पूजा करता,
जीवन भर आभारी है।।
संत विवेकानंद हमारी,
युवा - शक्ति के जादू हैं।।
ओज भरा जिनकी वाणी में,
संचेतना - सु - साधू हैं।।
जागो ,उठो लक्ष्य पाने तक,
रहो कर्मरत भारी हैं।
कर्मों का मंदिर मानव - तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।।
बिना ध्यान एकाग्र नहीं मन,
तभी इंद्रियों पर संयम।
ज्ञान मिले तब ही शिक्षा का,
प्रगति -पंथ पर बढ़े कदम।।
है प्रमाद मानव का बैरी,
छात्र हेतु बीमारी है।
कर्मों का मंदिर मानव-तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।।
ज्ञान नहीं आता बाहर से,
भीतर तेरे वास सदा।
शोध तुम्हें करना है मानव,
शेष नहीं रहनी विपदा।।
अंतरतम में उसे खोजना,
दिखला मत लाचारी है।
कर्मों का मंदिर मानव - तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।।
मन से वृद्ध नहीं होना है,
यावज्जीवन सीखें हम।
अनुभव ही शिक्षक हैं अपने,
बढ़ें हमारे युगल कदम।।
अहं विनाशक मानवता का,
तन, मन, धन संहारी है।
कर्मों का मंदिर मानव - तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।।
धैर्य, उरज पावनता, उद्यम,
त्रय गुण धारण सदा करें।
सदा सफलता चरण चूमती,
'शुभम' पंथ ही वरण करें।।
कर्मशील मानव की धरती,
फूली - फली सुखारी है।
कर्मों का मंदिर मानव -तन,
मन ही सुहृद पुजारी है।।
🪴 शुभमस्तु !
१३.११.२०२१◆४.१५
पतनम मार्तण्डस्य।
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