बुधवार, 24 नवंबर 2021

पारस परिणय प्रीति का 🌹 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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     💛  प्रदत्त शब्द  💛

[परस, परिणय,प्रणय,प्रियतमा, प्रीति]

       

           ❤️ सबमें एक ❤️


कंचन काया कामिनी,किया परस जब अंग।

अवगुंठन ज्यों ही उठा,लाल गाल  का  रंग।।


अभी बहुत  व्यंजन रखे,गहा हाथ  में  कौर।

परस नहीं मोदक प्रिये,ले लूँगा  फिर  और।।


परिणय को  मत जानिए, बंधन  मेरे मीत।

जीवन भर  गाए युगल,है  वह पावन गीत।।


परिणय-वेला आ गई, अंग-अंग में ज्वार।

प्रियतम  खोलेगा  प्रिये,बंद नेह   के   द्वार।।


प्रणय-निवेदन कर रही, उमड़ा प्रेम अनंत।

हृदय  युगल हों एक ही,बाँहों में  ले  कन्त।।


प्रणय बिना दांपत्य का, रूखा जीवन ढेर।

लगा  बेर  के संग ज्यों,चिकना कंचन केर।।


पत्नी ही बस प्रियतमा,नहीं और को ठौर।

लेने को जिसको गए,बाँध शीश पर मौर।।


पत्नी प्रेयसि प्रियतमा,बसते जिसमें प्राण।

धर्म कन्त का एक ही,कर आजीवन त्राण।।


प्रीति लगी तुमसे अमर,कभी न भूलें कन्त।

मम उर के वासी रहो, अपना नेह  अनंत।।


'शुभम' तुम्हारी प्रीति वश,जीवन है खुशहाल

प्रभु से विनती है यही,मिले ताल   से  ताल।।

        

         ❤️  एक में सब   ❤️


परिणय पावन प्रीति का,

                   हुआ परस तव   अंग।

  प्रणय समर्पण है तुम्हें,

               न      हो प्रियतमे!   दंग।।


🪴 शुभमस्तु !


२४.११.२०२१◆७.१५आरोहणं मार्तण्डस्य।


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