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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सच के रूप हजारों होते।
भू,नभ,जल में सच को बोते।।
जीव अंश, अंशी प्रभु प्यारे।
सरिता के दो सजल किनारे।।
फिर क्यों मानव रोते- धोते।सच...
फूल, शूल, पादप में छाया।
सूरज , चाँद, नखत में भाया।।
गिरि सर सागर सदा भिगोते।सच..
मानव, दानव,पशु, खग सारे।
सत्य ईश के सदा सहारे।।
चर, अचरों में नित्य समोते।सच...
सच को तो सच ही है रहना।
कितनी भी धारों में बहना।।
सच के रूप कदापि न सोते।सच...
'शुभम' सत्य की महिमा न्यारी।
महक रही जिसकी जग क्यारी।।
मानव,पिक,मयूर,बक,तोते।सच...
🪴शुभमस्तु !
१४.११.२०२१◆१.३० पतनम
मार्तण्डस्य।
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