सोमवार, 22 नवंबर 2021

सजल 🥗

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

समांत-आरी।

पदांत- है।

मात्राभार -14.

मात्रा पतन :नहीं है।

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

प्रभु  की   महिमा   न्यारी  है।

शूल -  फूल  की  क्यारी   है।।


कभी  रात है   दिवस   कभी,

साँझ ,  सुबह   की    बारी है।


आँसू   हैं     मुस्कान    कभी,

पुरुष  परुष   नम   नारी   है।


सरिता  सागर  सलिल   बहे,

मधुर  कहीं  जल   खारी  है।


सबके  गुण   अपने -  अपने ,

नभ  हलका   भू    भारी  है।


कटहल  ऊबड़ -   खाबड़  है,

ख़रबूज़े     पर     धारी      है।


'शुभम' आज पनघट  प्यासा,

एक    नहीं    पनिहारी      है।


🪴 शुभमस्तु !


२२ नवंबर २०२१◆११.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...