बुधवार, 24 नवंबर 2021

भक्ति, साधना ,दुःख, विचार 🪴 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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     🪔  प्रदत्त शब्द  🪔

[ दुख,भक्ति,साधना,मानव,विचार ]

   

            ☘️  सब में एक  ☘️


दुख दिन है सुख रात है, देता दुःख उजास।

सुख में सोता आदमी, बना ताश- आवास।।


दुख में रटता राम को,सुख में दिखता काम।

दुख जाग्रति है मूढ़ मन,सुख में मनुज-विराम


भक्ति करें निज इष्ट की, मत हो मूढ़ गुलाम

नेता अंधे  अर्थ  के,पाल  न उनका   झाम।।


विमल भक्ति जो ईश से,मिलते हैं भगवान।

राजनीति  के  खेल  में,टूटें सुर  लय  तान।।


साधक करते साधना,बाधक हैं अहि कीट।

चंदन नित निर्विष तना, शीतलता से पीट।।


प्रेम  राग की साधना, सहज  नहीं है राह।

एकनिष्ठता  हो  सदा, मात्र प्रेम  की  चाह।।


मानवता यदि मर चुकी,क्या मानव का मोल

मानव तन में आदमी, बस चमड़े का खोल।।


जीवित  मानवता अभी, धरती पर हे मीत!

मानव से दुनिया चले,उर में प्रेम  पुनीत।।

  

जैसे  भाव विचार हों, बनता  वैसा   जीव।

मानव तन में क्यों बना,रे नर कायर क्लीव!!


धी निज पावन कीजिए,रखिए शुद्ध विचार।

स्वयं कुल्हाड़ी मार मत,करके पाँव प्रहार।।

       

        ☘️  एक में सब  ☘️

  

भक्ति करें दुख में सभी,

                  करें    साधना    लोग।

पावन रहें विचार यदि,

                      रहे न मानव  -  रोग।।


🪴 शुभमस्तु !


२४.११.२०२१◆१०.१५आरोहणं मार्तण्डस्य।


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