शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

इंद्रधनुष है जीवन 🌈 [ अतुकान्तिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जीवन और क्या है!

एक इंद्रधनुष ही तो है,

बदलते रहते हैं

जिसमें रंग,

आकाशीय इंद्रधनुष की तरह

नहीं हैं इसमें 

मात्र सप्तरंग।


जीवन के इंद्रधनुष में

रंग हैं हजारों लाखों,

कितना भी छिपा लो

कितना भी ढाँको,

उन्हें बाहर आना है,

मानव के जीवन का

ऐसा ही ताना - बाना है,

जितना भी छिपाना है,

रंगों को उभर आना है।


बादलों से बरसात के

बाद आकाश में

मन मोहक इंद्रधनुष

उभरते हैं,

जो प्रकृति सौंदर्य में

नए रंग भरते हैं,

मानव - जीवन में

सदा बरसातें हैं

सुखों की

कभी दुःखों की,

इंद्रधनुष भला

 क्यों नहीं अपना रंग

दिखलायेंगे! 

लाल हरे पीले नीले

काले धूसर रंग 

उभारेंगे!


जीवनीय इंद्रधनुष का

नियंता कोई और है,

अन्यथा आदमी

गिरगिट नहीं बनता,

आस्तीन का 

साँप भी नहीं  बनता,

मधुर स्वरभाषी

कोयल,पपीहा,मयूर ही बनता,

नियति वश मिला है

मानव जीवन नर देह,

पर बना रहा है उसे

क्यों क्रूरताओं का गेह,

इसीलिए कभी -कभी

आता है नवरूपों में मेह।


आएँ ,

अब जीवन को

विचार कर 'शुभम 'बनाएँ,

जो हुआ उसे भूल जाएँ,

जीवन में नए -नए

सप्त रंगों के

इन्द्रधनुष उगाएँ।


🪴 शुभमस्तु !


२६.११.२०२१◆११.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।


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