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✍️ शब्दकार©
🌷 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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करके आँखें बंद चीखता,
अंधकार यह क्यों छाया।
मानव कैसा अंध मूढ़ मति,
समझ नहीं प्रभु को पाया।।
सर्व शक्तियाँ हैं मानव की,
उनके हम अधिकारी हैं।
मानव हित में उन्हें जगाएँ,
नहीं बहुत लाचारी हैं।।
नाशवान यह दुनिया सारी,
अमर नहीं मानव काया।करके...
अंतर में स्वभाव जो तेरा,
बाहर लघु आकार वही।
विज्ञ विवेकानंद संत ने,
लाख टके की बाट कही।।
भीतर ,भीतर,भीतर जा नर,
बाहर, बाहर तू धाया।करके...
दिल,दिमाग में झगड़ा हो तो,
दिल की मानें बात सभी।
निर्णय के स्वर भर देता वह,
नहीं बाल की खाल कभी।।
भाव भरा निर्णय मिलता है,
सदा मनुज को जो भाया।करके...
शक्ति मध्य जीवन बसता है,
निर्बलता ही मरना है।
है विस्तार नाम जीवन का,
बैठ सिकुड़ क्या डरना है !!
जीवन नाम नेह का हे नर!
ले जाए क्या है लाया !करके...
विश्व एक शाला है सुंदर,
आओ हम व्यायाम करें।
सुदृढ़ बनाएँ तन-मन अपने,
जग को तारें स्वयं तरें।।
'शुभम'समस्याओं को समझें,
गीत प्रभाती है गाया ।करके...
🪴 शुभमस्तु !
१४.११.२०२१◆ ३.१५ पतनम मार्तण्डस्य।
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