मंगलवार, 9 नवंबर 2021

गई दिवाली जाड़ा आया 🗻 [ बालगीत ]

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार © 

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

गई   दिवाली   जाड़ा  आया।

खेत,बाग़, वन,घर  में छाया।।


मोटे कंबल,   शॉल,    रजाई।

टोपे, स्वेटर   की ऋतु  आई।।

मफ़लर ने  सिर को गरमाया।

गई  दिवाली   जाड़ा  आया।।


ओस   बरसती   कुहरा भारी।

ढँके खेत, फूलों की  क्यारी।।

पेड़ों पर जल  ढुलता   पाया।

गई  दिवाली  जाड़ा   आया।।


कार्तिक,अगहन,पूस सताती।

मैदानों    में     सर्दी   आती।।

लगता   ठंडा  तन  पर फाया।

गई   दिवाली  जाड़ा आया।।


पूस ,माघ में  कँपते थर- थर।

उड़े कपासी कुहरा झर-झर।।

खाना गरम  सभी को भाया।

गई  दिवाली  जाड़ा  आया।।


रोटी   गरम   बाजरे    वाली।

सरसों भुजिया लगे निराली।।

शकरकंद का स्वाद लुभाया।

गई  दिवाली   जाड़ा  आया।।


'शुभम' ठंड से बचना सबको।

अधिक नहीं सोना भी हमको

कुक्कड़ कूं   ने   राग सुनाया।

गई  दिवाली  जाड़ा   आया।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.११.२०२१◆१०.००

आरोहणं मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...