सोमवार, 29 नवंबर 2021

सजल 🎙️

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

समांत-इयाँ।

पदांत -अपदान्त।

मात्राभार -20

मात्रा पतन- *

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

खूब      होने      लगी    हैं  यहाँ  चोरियाँ।

दिल    चुराने    लगी     हैं सुघर    गोरियाँ।।


एक    ही    दिल    तुम्हारे   सीने   में   है,

ये   चुरा   ही   न लें  शहर  की    छोरियाँ।


पाँव -  कंदुक - सा  तुमको समझा  सदा,

हो न     जाएँ    कहीं     चंद बरजोरियाँ।


आँख    के   द्वार   से    देह  में  जा    घुसें ,

बैठ     जाती     हैं   ये  उर   की   पौरियाँ।


मत   दिल  में    घुमाना -फिराना   इन्हें,*

दूर     भागें     फ़टाफ़ट    बना  मोरियाँ।


सूत्र   मंगल   के     खंडित करती   रहीं,

बिखराती         हुई        सिंदूरी  रोरियाँ।


मत   चखना   'शुभम'   वासनाई   जहर,*

बन    जाएँ     दिवाली    कहर     होरियाँ।*


🪴 शुभमस्तु !

२९.११.२०२१◆१२.४५ पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...