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समांत-इयाँ।
पदांत -अपदान्त।
मात्राभार -20
मात्रा पतन- *
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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खूब होने लगी हैं यहाँ चोरियाँ।
दिल चुराने लगी हैं सुघर गोरियाँ।।
एक ही दिल तुम्हारे सीने में है,
ये चुरा ही न लें शहर की छोरियाँ।
पाँव - कंदुक - सा तुमको समझा सदा,
हो न जाएँ कहीं चंद बरजोरियाँ।
आँख के द्वार से देह में जा घुसें ,
बैठ जाती हैं ये उर की पौरियाँ।
मत दिल में घुमाना -फिराना इन्हें,*
दूर भागें फ़टाफ़ट बना मोरियाँ।
सूत्र मंगल के खंडित करती रहीं,
बिखराती हुई सिंदूरी रोरियाँ।
मत चखना 'शुभम' वासनाई जहर,*
बन जाएँ दिवाली कहर होरियाँ।*
🪴 शुभमस्तु !
२९.११.२०२१◆१२.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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