गुरुवार, 25 नवंबर 2021

ग़ज़ल 📀

 

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✍️ शब्दकार ©

📀 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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परिंदे   चिचियाए    डंगर  रँभाने  लगे।

लोग  शहरों  से  जब इधर आने  लगे।।


यहाँ  पछुआ   के  दौर  भले  ठंडे   थे,

चली   पुरवाई   वदन   गरमाने   लगे।


गोरी  छोरियाँ  भी   कुलाँचें  न  भरतीं,

भोरे    छोकरे    सुघर    इठलाने   लगे।


आदमी  औरतें    सब   चौकन्ने हुए  हैं,

शहर  के    लोग  सपन दिखलाने  लगे।


'शुभम'  जानते   हैं  वे   गँवई भी   नहीं,

घोल कर शहद  वचन  क्यों सुनाने लगे।


🪴 शुभमस्तु !


२५.११.२०२१◆२.३० 

पतनम मार्तण्डस्य।


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