शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

ग़ज़ल 🍀


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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भरा  जहाँ  में रंजो -  ग़म  है।

जर्रे   में   तो   रंजो - ग़म  है।।


आया  था  तो   थीं   मुस्कानें,

चला  गया  तो  रंजो -ग़म है ।


खेला जब तक चला खिलौना,

टूट  गया  तो   रंजो -  ग़म  है।


खिले   फूल   भौरें    मँडराए,

फूल  झड़ा  तो रंजो - ग़म  है।


सुबह  हुई  तो  जागी  कुदरत,

तम आया  तो रंजो -  ग़म  है।


खुशियों की चिड़ियाँ हैं नाचीं,

जुदा  हुआ  तो रंजो -ग़म  है।


'शुभम' बना है  जोड़ा सबका,

बिखर गया तो रंजो -  ग़म है।


🪴 शुभमस्तु !


१८.११.२०२१◆३.१५

 पतनम मार्तण्डस्य।

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