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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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भरा जहाँ में रंजो - ग़म है।
जर्रे में तो रंजो - ग़म है।।
आया था तो थीं मुस्कानें,
चला गया तो रंजो -ग़म है ।
खेला जब तक चला खिलौना,
टूट गया तो रंजो - ग़म है।
खिले फूल भौरें मँडराए,
फूल झड़ा तो रंजो - ग़म है।
सुबह हुई तो जागी कुदरत,
तम आया तो रंजो - ग़म है।
खुशियों की चिड़ियाँ हैं नाचीं,
जुदा हुआ तो रंजो -ग़म है।
'शुभम' बना है जोड़ा सबका,
बिखर गया तो रंजो - ग़म है।
🪴 शुभमस्तु !
१८.११.२०२१◆३.१५
पतनम मार्तण्डस्य।
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