सोमवार, 22 नवंबर 2021

गीतिका 🌳

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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दें  मिला हाथ में  हाथ  पास हम  आ जाएँ।

जो दें सबका हम साथ पास हम आ जाएँ।।


ये   आदर्शों    के  ढोल  दूर  के   लगें   भले,

जन-जन हो आज सनाथ पास हम आ जाएँ


मुखपोथी  के   चित्रों  में  यों भरमाना  क्या,

मुख हो  आँखों के साथ पास हम आ जाएँ।


उर  की कमान से चलें नित्य विष बुझे बाण,

यदि झुके चरण में माथ पास हम आ जाएँ।


सबको  चलना  है 'शुभम' अकेले  जीवन में,

हो सुगम सुभीता पाथ पास हम आ  जाएँ।

२२.११.२०२१  ४.३० पतनम मार्तण्डस्य.

🪴 शुभमस्तु !


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