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✍️शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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छप्पर फाड़े धन मिले, हर कोई ले डाल।
धन - वर्षा होने लगे,हों सब मालामाल।।
स्वेद बहाएँ देह का,आए धन की बाढ़।
रेल - पथों पर ढो रहे,पत्थर जेठ अषाढ़।।
सेंध न लगती भीत में,खुला पड़ा है देश।
धन-वर्षा नित ही करें,बदल गिरगिटी वेश।।
धन - वर्षा हित मेघ की,करनी होती खोज।
ग़बन,डकैती, चोरियाँ, रिश्वत बरसे रोज़।।
तन कब से बिकता रहा,बिके देह के अंग।
धन-वर्षा के हेतु ही, छिड़ी वतन में जंग।।
धर्म बेच बहुरूपिये , बेचें नित्य ज़मीर।
धन- वर्षा जब से हुई, होने लगे अमीर।।
जो समर्थ जन देश के, उन्हें न कोई दोष।
देश बेच मरना उन्हें,व्यर्थ आपका रोष।।
निर्धन के घर एक भी,गिरे न धन की बूँद।
धन - वर्षा पुरुषार्थ को,देखें आँखें मूँद।।
बाद धर्म के दूसरा,अर्थ 'शुभम' पुरुषार्थ।
जीवन जीने के लिए,करें मनुज परमार्थ।।
धन्यवाद धनवान का,जो करता उपकार।
उसको तो जग जानता, जमा कुंडली मार।।
उस जल में कीड़े पड़ें, दूषित मैला ताल।
धन-वर्षा किस खेत में,करती कभी कमाल।
🪴 शुभमस्तु !
०१.११.२०२१◆ ३.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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