शनिवार, 20 नवंबर 2021

कछुआ- खरगोश दौड़ 🐇 [ कुंडलिया]


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✍️ शब्दकार ©

🐢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

आया कछुआ ताल से,वन से सित खरगोश

शर्त लगाने को अड़ा, दिखलाता आक्रोश।।

दिखलाता आक्रोश, कहा रे!कछुए आजा।

कौन दौड़ता तेज,शक्ति अपनी दिखलाजा।।

'शुभं'लगी तब होड़,मिली झाड़ी की छाया।

सोया शशक महान,प्रथम कछुआ ही आया।


                        -2-

तेरे  मन  में जो  उगा, अहंकार  का   बीज।

बढ़ने  मत दे  तू उसे,बहुत बुरी यह  चीज।।

बहुत बुरी यह चीज, शशक-सा शरमा जाए।

यदि  कछुए  के  संग,शर्त से दौड़    लगाए।।

'शुभम' समझ  संदेश, शूल मत  उगा  घनेरे।

सबको  दे सम्मान, मिटेंगे  सब  दुख   तेरे।।


                        -3-

सीमा  बालक  तक नहीं, सुनी  कहानी एक।

होड़ लगी दो जंतु की,कछुआ सीधा  नेक।।

कछुआ सीधा नेक, शशक भी था  गर्वीला।

ऊँचा नहीं  विवेक,उठा ताकत का   टीला।।

'शुभम' हुई तब दौड़,दौड़ता कछुआ धीमा।

सोया तरु की छाँव,शशक क्यों पाता सीमा!


                        -4-

कछुआ एक प्रतीक है,खोना मत निज धीर।

पा  जाएगा   लक्ष्य  को, कहलाए  रणवीर।।

कहलाए   रणवीर, अहं  की ओढ़े    चादर।

होती उसकी  हार,शक्ति से जो है     बाहर।।

'शुभं'न बन खरगोश,चले जब ताजी पछुआ।

सोया  खोता दाँव,प्रथम आता है   कछुआ।।


                        -5-

सबको विधि ने ज्ञान से,किया यहाँ धनवान।

कैसे धी से काम  लें, लगता कब  अनुमान!!

लगता कब अनुमान,अहं में शशक न जीता।

बढ़ी कूर्म की शान,शशक लौटा घर रीता।।

'शुभम' जान ले धीर,बनाता उत्तम  हमको।

धी है सदा महान,बनाती सत नर  सबको।।


🪴 शुभमस्तु !

 

२०.११.२०२१◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।


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