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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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लिए हाथ में डाभ का,झाड़ू एक पुनीत।
सूखे दल सब झाड़ती, बाला एक अभीत।।
देती पावन प्रेरणा, स्वच्छ रखें घर द्वार,
देवालय घर -घर बने, गाएँ मंगल गीत।
बाहर भीतर स्वच्छ हों,मन को मिले सु शांति
मानव - मानव में रहे,मन की साँची प्रीत।
यदि अपना परिवेश भी,रहता दूषित क्लांत,
कैसे दें संदेश हम, कैसी पावन नीत।
जहाँ स्वच्छता - वास है,रोग न आते पास,
गाँव नगर फूलें- फलें,स्वच्छालय की जीत।
हरियाली हो खेत में,महक रहे हों फूल,
अलि दल हों गुंजारते,बनें प्रकृति के मीत।
'शुभम'धरा,सागर,गगन,में हो स्वच्छ प्रभात,
आतिश धूम न हो कहीं,पावस,गर्मी, शीत।
🪴 शुभमस्तु !
२३.११.२०२१◆१.३०पत नम मार्तण्डस्य।
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