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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपने दीपक बनें आप ही,
नव प्रकाश जग भर देना।
धरती के कोने - कोने के,
अंधकार को हर लेना।।
आत्मा सर्वश्रेष्ठ गुरु शिक्षक,
ज्ञान उसी से पाना है ।
पहले उर का तम हर लेना,
तब बाहर शुभ लाना है।।
अपनी तरणी आप चलाकर,
सबको पार लगा खेना।अपने...
तुम्हें कौन सिखला सकता है,
भले - बुरे के तुम ज्ञाता।
कौन तुम्हें अध्यात्म पढ़ाए,
तुम गुरु, पिता तुम्हीं माता।।
झाँको अपने अंतरतम में,
खड़ी ज्योति की युव-सेना।अपने ...
ब्रह्म - अंड में जो स्थित है,
देह -पिंड में उसका वास।
वृथा भटकना क्यों इस जग में,
भीतर खोजो दिव्य उजास।।
सूरज - सोम नयन दो तेरे,
भीतर भी हैं दो नैना। अपने...
घट के भीतर दिया जला है,
बाहर प्रभा उजाले दो।
अंतर को ज्योतिर्मय करके,
जग को लाभ उठाने दो।।
सुमन समाई सद सुगंध से,
पावन हो रमणी रैना।अपने...
नाभि बस रही कस्तूरी का,
'शुभम' शोध सब कर लेना।
नहीं भटकना वन-उपवन में,
उड़ें खोल अपने डैना।।
हरियाली ही देना जग को,
नहीं शूल देना पैना।अपने...
🪴 शुभमस्तु !
१४.११.२०२१◆११.४५
पतनम मार्तण्डस्य।
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