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✍️ शब्दकार ©
🌟 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आसमान में झिलमिल तारे।
लगते हैं आँखों को प्यारे।।
सूर्य अस्त पश्चिम में होता।
बीज शीत के जग में बोता।।
फैले हुए सघन अँधियारे।
आसमान में झिलमिल तारे।।
खेल रहे ज्यों आँख मिचौनी।
श्वेत रंग के जैसे लौनी।।
जागें सारी रात न हारे।
आसमान में झिलमिल तारे।।
बेला के फूलों- से झलकें।
धीरे - धीरे हिलतीं पलकें।।
सरि सरवर को कर उजियारे।
आसमान में झिलमिल तारे।।
तारों के सँग चंदा मामा।
आते पीला पहन पजामा।।
देते 'एक रहो' के नारे।
आसमान में झिलमिल तारे।।
'शुभम'न दिन में वे दिख पाते
जाने कहाँ चले वे जाते!!
करते दृग से सभी किनारे।
आसमान के झिलमिल तारे।।
🪴 शुभमस्तु !
२७११२०२१★८.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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