पत्र-लेखन विधा:तब और अब 🖋️
[ लेख ]
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✍️ लेखक
🖋️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम
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साहित्य की अनेक गद्य औऱ पद्य विधाओं की गद्य तरह पत्र -लेखन भी एक विधा रही है। गद्य की अनेक विधाओं में नाटक,निबंध,लेख,कहानी, उपन्यास,संस्मरण,रेखाचित्र, दैनंदिनी, इंटरव्यू(साक्षात्कार),शिकार साहित्य आदि की तरह पत्र- लेखन भी एक प्रसिद्ध विधा है।
समय अनवरत परिवर्तनशील है।समय बदलता है ,तो सब कुछ बदलने लगता है। इस परिवर्तन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। वह निरंतर प्रवहमान सरिता की तरह है। एक समय था, जब पोस्ट कार्ड ,अंतर्देशीय पत्र, बंद लिफ़ाफ़े, पंजीकृत पत्र, यू पी सी ,स्पीड पोस्ट , पार्सल, ,मनी आर्डर आदि अनेक रूप थे ,जिनके माध्यम से हर साधारण से विशेष व्यक्ति तक अपने संदेश भेजा करते थे। वह व्यक्तिगत, सरकारी और व्यापारिक पत्रों का युग था।
व्यक्तिगत पत्रों में पण्डित जवाहर लाल नेहरू के अपनी पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लिखे गए 'पिता के पत्र पुत्री के नाम ' से पुस्तक रूप में ख्याति प्राप्त हुए। हम सभी अपने सम्बन्धियों को पत्र लिखा करते थे ,जिनका श्री गणेश ' अत्र कुशलं तत्रास्तु'से हुआ करता था। प्रेमी-प्रेमिका, पति -पत्नी, पिता- पुत्र ,पिता -पुत्री आदि अनेक सम्बंधों के अनेक प्रकार के पत्र लिखे जाते थे।इन पत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि पत्र आने की प्रतीक्षा बहुत ही प्रिय लगती थी। यदि अपने पड़ौस में भी डाकिया पत्र लेकर आया है ,तो उससे यह पूछना नहीं भूलते थे, कि डाकिया बाबू हमारी कोई चिट्ठी -पत्री तो नहीं आई। यदि उसका जबाब 'नहीं' में होता ,तो उदास होना स्वाभाविक था।यदि उसने 'हाँ' कहा ,तो हमारी बाँछें खिल जाती थीं। किसी की मृत्यु का संदेश भेजने पर पोस्ट कार्ड का एक कोना फाड़ दिया जाता था।जिससे पाने वाला पत्र देखकर बिना पढ़े ही समझ लेता था कि शोक का पत्र है।
प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री शैलेश मटियानी का हिंदी आंचलिक उपन्यास 'चिट्ठीरसा' ख्यातिलब्ध साहित्यिक कृति है।यह पत्र लेखन विधा की अनुपम कृति है। इसका विशिष्ट उल्लेख मैंने अपने बाबा नागर्जुन विषयक अपने शोध ग्रंथ में किया है। पति -पत्नी के कुछ पत्र -विधा आधारित ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं।
सरकारी पत्रों में उच्च अधिकारियों के अपने अधीनस्थ कार्यालयों को ढेर सारे पत्र लिखे जाते थे। नियुक्ति, स्थानांतरण, कार्य भार ग्रहण, पदच्युति, निलंबन आदि के पत्र लिखने का वह अलग ही युग था। एक -एक कार्यालय में ढेरों पत्र आते जाते थे।लेकिन आज कंप्यूटर, मोबाइल के डिजिटल युग ने पत्र लेखन विधा का ढेर कर दिया है। अति महत्त्वपूर्ण पत्र पंजीकृत करके भेजे जाते थे , ताकि उनके खोने का भय न रहे ,साथ ही ये पत्र उसी व्यक्ति को प्राप्त क़राये जाते थे ,जिसके नाम से भेजे जाते थे। दूसरा व्यक्ति उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता था। चैक, ड्राफ्ट आदि भी पंजीकृत करके ही भेजे जाते थे।आज भी भेजे जाते हैं।
व्यापारिक और वाणिज्यिक पत्रों में व्यापारियों के सम्बंधित फर्मों को पत्र ही भेजे जाते थे। डाक द्वारा ही उनकी बिल्टी भी डाक से ही आती जाती थीं। उनके चैक ,ड्राफ्ट आदि भी डाक से प्राप्त होते थे। आज के डिजिटल युग में जो धन धनादेश द्वारा हफ़्तों और महीनों में प्राप्त होता था, वह आज नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग आदि से कुछ ही पल में हो जाता है। आज भी पत्र लिखे जाते हैं ,किन्तु उनमें अब वह जिज्ञासा और उत्कंठा नहीं बची। व्हाट्सएप की चैटिंग के द्वारा , फोन से , संन्देश भेज कर पल भर में सारे सुख - दुःख के हाल लिए औऱ दिए जा रहे हैं।मनीऑर्डर भेजना बन्द कर दिया गया है। इसी प्रकार धीरे -धीरे बहुत कुछ बदलता जा रहा है।यह सब युग परिवर्तन का प्रभाव है। अब पाँच प्रतिशत से भी कम पत्र आदि का प्रेषण होता है। बीता हुआ अतीत लौटकर नहीं आता।
पत्र लेखन विधा तो विदा ही हो चुकी है। अब तो मोबाइल पर 'हाय' 'हैलो' होती है औऱ बिना भूमिका के बात आरम्भ हो जाती है ,जो कुछ सेकिंड से लेकर घंटों चलती है। अब यह लिखना और बोलना भी नहीं होता : हम सब यहाँ पर ईश्वर की कृपा से सकुशल हैं औऱ आशा है कि आप भी कुशल मंगल होंगे। आगे समाचार यह है कि तुम्हारी भाभी ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया है। अपनी भूरी भैंस ब्या गई है। कुतिया ने भिसौरे में चार प्यारे बच्चे दिए हैं। तुम्हारी आर्मी की नौकरी का खत आ गया है,इसलिए तुरंत चले आओ। छोटों को प्यार और बड़ों को सादर चरण छूना पहुँचे। आदि -आदि .............।
🪴 शुभमस्तु !
०७.११.२०२१◆९.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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