शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

दीपावली- शृंगार 🏕️ [ दोहा ]

 

(दीपक, उजियार,माटी,वर्तिका,तमस)

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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ज्योति - पर्व  दीपावली,उर में भरे   उछाह।

जलते दीपक तम हरें,भरते ज्योति-प्रवाह।।


दीपक के तल में बचा,तम का   पारावार।

दीप-पर्व आया 'शुभम',करना है उजियार।।


अमा अँधेरे  की मिटा,फैलाएँ उजियार।

माटी के दीपक जलें,प्रमुदित हों घर-द्वार।


ज्ञानद्वीप  उर में जला, मेटें हर तम - भार।

तम में मत रहना शुभं,भर जन में उजियार।


माटी का दीपक सदा ,देता नवल प्रकाश।

दिया उसे कहता 'शुभं',करता तम का नाश।


माटी का  ही गात ये, माटी में    हो   लीन।

कर माटी का मान तू,समझ न उसको हीन।।


जली वर्तिका दीप में,पी-पी घृत  या   तेल।

सुघड़ मृत्तिकाधार से,करती पल-पल मेल।।


बन जा मानव वर्तिका,दे जग सोम उजास।

करता कोई ज्योति की,तुझसे जीवन आस।।


कैसे बनती वर्तिका,भरती नवल  उजास।

जानें बतलाता 'शुभम',देता धवल कपास।।


तमस मिटाने के लिए,दीप मालिका  पर्व।

आया भारत भूमि पर,कहते कवि , गंधर्व।।


गया तमस जब बुद्धि से,मिला सोम-सा ज्ञान

पाकर मानव ज्ञान को,करना मत अभिमान


माटी से  दीपक बना,

            करता   जग उजियार।

जला वर्तिका  ज्योति ज्यों,

            गया  तमस  सब हार।।


🪴 शुभमस्तु !


०३.११.२०२१◆९.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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