मंगलवार, 23 नवंबर 2021

धूप गुनगुनी 🌄 [ बालगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌄 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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धूप  गुनगुनी  छत  पर आती।

हम सबको वह खूब सुहाती।।


जब निकले  सूरज का गोला।

लगता कितना भोला -भोला।

अपनी चादर   धूप  बिछाती।

धूप गुनगुनी  छत पर आती।।


लंबी - चौड़ी   बिछा  चटाई।

बैठे    बाबा ,    दादी,  ताई।।

अम्मा  भी ऊपर  आ जाती।

धूप गुनगुनी छत पर आती।।


अगहन का जाड़ा अब आया।

शीत-लहर की अद्भुत माया।।

मूँगफली मुनिया नित खाती।

धूप गुनगुनी छत पर आती।।


माँ ने छत  पर दही  बिलोया।

मट्ठे का  मुँह  जल  से धोया।।

तैर  छाछ पर लवनी  आती।

धूप गुनगुनी छत  पर आती।।


देखो  खेल    खेलते   पिल्ले।

धूसर, काले ,गौर     मुटल्ले।।

कुतिया माँ निज दूध पिलाती।

धूप गुनगुनी  छत पर आती।।


'शुभम'बाजरे की  सद रोटी।

डाल छाछ में   खाते मोटी।।

शकरकंद की  खीर लुभाती।

धूप  गुनगुनी छत पर आती।।


🪴 शुभमस्तु !


२३.११.२०२१◆११.००

आरोहणं मार्तण्डस्य।


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