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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नुकसान है कभी तो नफ़ा होता है।
ज़िंदगी में यही हर दफ़ा होता है।।
आते गए लोग चलते भी गए,
भरा - पूरा जहाँ भी सफ़ा होता है।
देता ,देता ही रहा जमाने को मैं,
पेट भरता ही नहीं खफ़ा होता है।
मेरा मिसरा तलाश में है तेरी,
नहीं आते हो तो जफ़ा होता है।
किसी के दिल को दुखाता है कोई,
चैन मिलता ही नहीं कफ़ा होता है।
जिंदा जज़्बात जला कर क्या जीना,
अपनी औक़ात पे सितम रफ़ा होता है।
'शुभम' की इबादत का दिया रौशन है,
भले हों करम तो अच्छा ही जज़ा होता है।
जफ़ा=अत्याचार।
कफ़ा=पीड़ा।
रफ़ा=समाप्त होना।
जज़ा=प्रतिफ़ल।
🪴 शुभमस्तु !
०१.११.२०२१◆५.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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