शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

ग़ज़ल 🌍


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✍️ शब्दकार ©

🌍  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हाल   हुआ  बेहाल   हमारी धरती   का।

कागा बना  मराल  हमारी धरती    का।।


एक  टाँग   पर   बगुला  ध्यान लगाता  है,

आया  समय  कराल   हमारी धरती का।


आपस   में   खाने  को  लड़ते देश   यहाँ,

कोरोना    है    काल    हमारी धरती  का।


शांतिदूत     कहलाते    पंजा खूनी    है,

रंग  हुआ  है  लाल   हमारी  धरती  का।


आस्तीन  के   साँप   डस  रहे माता  को,

बहुत  बुरा    है  हाल   हमारी धरती का,


बुद्धि  चर  रही   घास   कीट इनसे बेहतर,

उतर  गया  है  शाल   हमारी धरती   का।


'वसुधा  ही   परिवार'  झूठ ये लगता    है,

कुछ भी नहीं  हलाल  हमारी धरती   का।


वक़्त  और   भी   बुरा  खड़ा तैयारी  में,

कैसे   रहे    बहाल     हमारी  धरती  का।


'शुभम'  फूँक कर रखें कदम धीरे - धीरे,

बर्बर  अटल  बबाल   हमारी धरती  का।


🪴 शुभमस्तु !


०५.११.२०२१◆२.००

पतनम मार्तण्डस्य।


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