[रागिनी, मयूर,पुष्पज, अंगना, पर्जन्य]
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✍️ शब्दकार ©
❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🌷 सब में एक 🌷
मधुर वचन से रागिनी,छीने उर की कांति।
अक्ष -द्वार से उर धँसे, बचे न थोड़ी शांति।।
छः रागों की रागिनी, पत्नी सबकी पाँच।
भरत और हनुमान मत,करते कथनी साँच।।
बैठा भवन -मुँडेर पर,नर्तित सुघर मयूर।
सावन आया झूम के, भर-भर जल भरपूर।।
करता नृत्य मयूर वन,मुग्ध मयूरी आज।
पारित: प्रिय के घूमती, देख पंख सिर साज।
पुष्पज पाने के लिए,अलि- दल की गुंजार।
पाटल पर होने लगी,पीते नित रस - सार।।
पुष्पज के सम्मोह में,हुआ परागण मीत।
अलि,नर-पुष्प न जानते,मादा मंजरि जीत।।
पग-पायल बजने लगी,करती प्रिय अभिसार
काली माघी यामिनी, चली अंगना नार।।
अंग -अंग में अंगना, के उठती हिलकोर।
स्पंदित वामांग सब, हिली पलक बिन शोर।।
झूम रहे पर्जन्य - दल,सावन - भादों मास।
प्यासी धरती मौन ही,करती जल की आस।।
तारापथ गंभीर है , देख - देख पर्जन्य।
आते - जाते छा गए,करते जगती धन्य।।
🍀 एक में सब 🍀
अँगना पुष्पज - कामना,
चली रागिनी द्वार ।
गरज रहे पर्जन्य बहु,
मौन मयूर विहार।।
*रागिनी=विदग्धा नारी। राग की पत्नी।
*पुष्पज= पुष्परज, मकरंद।
*अंगना= स्त्री,आँगन, अजिरा।
*पर्जन्य=बादल।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०२.२०२२◆१०.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।
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