बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

अँगना उर हिलकोर 🦋 [ दोहा ]


[रागिनी, मयूर,पुष्पज, अंगना, पर्जन्य]

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✍️ शब्दकार ©

❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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        🌷   सब में एक  🌷

मधुर वचन से रागिनी,छीने उर  की कांति।

अक्ष -द्वार से उर धँसे, बचे न थोड़ी शांति।।

छः रागों की रागिनी, पत्नी सबकी  पाँच।

भरत और हनुमान मत,करते कथनी साँच।।


बैठा भवन -मुँडेर पर,नर्तित सुघर  मयूर।

सावन आया झूम के, भर-भर जल भरपूर।।

करता  नृत्य मयूर वन,मुग्ध मयूरी    आज।

पारित: प्रिय के घूमती, देख पंख सिर साज।


पुष्पज पाने  के लिए,अलि- दल की गुंजार।

पाटल पर होने लगी,पीते नित  रस - सार।।

पुष्पज के  सम्मोह में,हुआ परागण   मीत।

अलि,नर-पुष्प न जानते,मादा मंजरि जीत।।


पग-पायल बजने लगी,करती प्रिय अभिसार

काली माघी  यामिनी, चली अंगना   नार।।

अंग -अंग में अंगना,  के उठती  हिलकोर।

स्पंदित वामांग सब, हिली पलक बिन शोर।।


झूम रहे पर्जन्य - दल,सावन - भादों  मास।

प्यासी धरती मौन ही,करती जल की आस।।

तारापथ  गंभीर है ,   देख - देख   पर्जन्य।

आते - जाते   छा  गए,करते जगती   धन्य।।

          🍀 एक में सब 🍀

अँगना  पुष्पज - कामना,

                        चली  रागिनी   द्वार ।

गरज   रहे  पर्जन्य   बहु,

                    मौन       मयूर    विहार।।


*रागिनी=विदग्धा नारी। राग की पत्नी।

*पुष्पज= पुष्परज, मकरंद।

*अंगना= स्त्री,आँगन, अजिरा।

*पर्जन्य=बादल।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०२.२०२२◆१०.३०आरोहणं मार्तण्डस्य। 

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