स्वर -हार चाहिए 🪴
🦚 सजल 🦚
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समांत: आर।
पदांत: चाहिए।
मात्राभार: 16
मात्रापतन: शून्य।
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मानव - उर को प्यार चाहिए
हरा - भरा संसार चाहिए
स्वर के बिना नहीं है वाणी
व्यंजन को स्वर -हार चाहिए
भले न दिखते चर्म - चक्षु से
सम्बन्धों को तार चाहिए
बातों से यदि बात न बनती
अरिदल को असिधार चाहिए
नाच उठेगी सरसों पीली
वासंती उपहार चाहिए
होली नहीं रंग से होती
रंग - रँगीली नार चाहिए
गल्प अकेले कब होती है
समभावी दो - चार चाहिए
चाहें यदि सम्मान जगत में
प्रेम भरा व्यवहार चाहिए
भावों का जब सागर उमड़े
सजल 'शुभम'उर-द्वार चाहिए
🪴शुभमस्तु !
२१.०२.२०२२◆६.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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