मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

मौनी मावस माघ की 🌁 [ दोहा ]

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🌁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

मौनी    मावस   माघ की,पावन गंगा  -  तीर।

मज्जन कर रवि-अर्ध्य दे,करे आचमन नीर।


नारी  के   सिर  पर टिका,हिंदू धर्म  - प्रभार।

कर स्नान सरि -धार में,करतीं पुण्य- प्रसार।।


तीर्थ -  धाम पावन करें, सदा कमाएँ    पुण्य।

नर - नारी  इस देश के,जन्म लिया है धन्य।।


जग को ज्योतित कर रहे,सूर्य देव  हैं  धन्य।

समता में कोई नहीं, रवि ही मात्र   अनन्य।।


विदा माघ आधा हुआ,शुभ आगमन वसंत।

हम  प्रयाग  आओ  चलें,गंग नहाएँ    कंत।।


नहा  रहीं  नारी सभी,नारी दल    के   संग।

गंगा जी  की धार  में,न हो धर्म  का  भंग।।


गंगाजल  भर पात्र में,उठा भानु   की ओर।

'शुभम' अर्घ्य देते सभी,नाच उठा मन मोर।।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०२.२०२२◆१२.१५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...