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✍️ शब्दकार ©
⏳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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लौट कर
आता नहीं
समय
जो चला गया,
जिसने न समझा
मूल्य उसका
अपने ही हाथों
छला गया,
समय को करने वाला
बरवाद
किया है सदा
समय ने ही
बरवाद।
निर्धारित है
हर क्षण,
सृष्टि का कण - कण,
समय के पड़ते
जब चरण,
शक्तिशाली भी
पतित बन
बनते कर्ण।
जन्म या मरण
सबका है निर्धारित
वह क्षण,
जब धरती पर
आना है ,
और कब
प्राण छूट
जाना है,
अज्ञात है
अनजान है तू,
कब क्या होना है,
अर्थ नहीं इसका यह
कि तानकर चादर
सोना है।
कर्मरत रह ,
अज्ञान में मत बह,
जो मिले
उसे सह,
जैसा बोएगा बीज
खिलेंगे वही फूल,
बबूल को बबूल
आम वपन का परिणाम
आम ही आम।
बचपन यौवन
प्रौढ़ता बुढ़ापा,
क्यों खोता है आपा,
जो जितना तापा
भय से वह नहीं काँपा।
कर्मशीलता ही
जीवन का इतर नाम,
सोते -सोते न हो जाए
जीवन की शाम,
इसलिए समय को
न कर बदनाम,
इस देह को ही
बना ले सुकर्म धाम,
यहीं हैं प्रयाग
हरिद्वार,
भटक मत
सारा संसार,
यही है
'शुभम' कथ्य का सार।
🪴शुभमस्तु !
📅2022◆10.25 आरोहणं मार्तण्डस्य।
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