गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

स्पर्श 🥇🥇 [ अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🥇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पूछता हूँ

देह की पंच कर्मेंद्रियों में

सबसे विशालकाय

है कौन सी ?

कोई देखती है

सुनती है कोई,

और सूँघती है कोई,

स्वाद लेती मुँह के मध्य

रसना,

पर सबसे वृहत है

त्वचा ,

नख से शिखा तक

एक त्वक आवरण सजा,

जिसके अंदर  देह के

हर अंग को रचा।


सद्य: प्रसविनी माँ 

के लिए 

अपनी संतान का स्पर्श !

देता है तन- मन को

निःशब्द हर्ष , 

किया है उसने

जीवन -मृत्यु से

कठोर संघर्ष !


प्रीतम के लिए

निज नवोढ़ा का स्पर्श,

कामदेव के पुष्पबाण का

लोमहर्षक आकर्ष,

दो चुम्बकों का 

उत्तर दक्षिण का

 मिलन - क्षण,

रोम - रोम में

विलोड़न स्फुरण,

जीवंत हो उठता

तन- मन का

कण - कण।


उष्ण - शीतल

मसृण - रुक्ष,

अवर्णनीय अनुभूति,

अंतराल के बाद 

मिले हुए

जनक का सुत के

ललाट का 

सुखद  स्पर्श!

शब्दातीत !

सर्वथा शब्दातीत !!


दंपति का

देह से देह का 

सम्पूर्ण स्पर्श!

दो देह एक प्राण,

वाणी में नहीं

कोई भी प्रमाण,

समस्त विश्व से

अनजान !

न कहीं कोई ध्वनि

नहीं कोई भान,

मात्र अघोषित चमत्कार,

दो से तीन बनने का

प्रकृति का आविष्कार!


स्पर्श में है 

धृतराष्ट्र का

भयंकर भीम  

(दु:) भाव !

वीभत्स कुभाव।

बूढ़े का सहारा

उसका सुपूत,

 उसके 'शुभम' स्पर्श 

में ही बसा है, 

जिसे उसकी रुक्ष

अँगुलियों का स्पर्श

बखूबी पहचानता है।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०२.२०२२◆१.३० 

पतनम  मार्तण्डस्य।

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