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✍️ शब्दकार ©
🥇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पूछता हूँ
देह की पंच कर्मेंद्रियों में
सबसे विशालकाय
है कौन सी ?
कोई देखती है
सुनती है कोई,
और सूँघती है कोई,
स्वाद लेती मुँह के मध्य
रसना,
पर सबसे वृहत है
त्वचा ,
नख से शिखा तक
एक त्वक आवरण सजा,
जिसके अंदर देह के
हर अंग को रचा।
सद्य: प्रसविनी माँ
के लिए
अपनी संतान का स्पर्श !
देता है तन- मन को
निःशब्द हर्ष ,
किया है उसने
जीवन -मृत्यु से
कठोर संघर्ष !
प्रीतम के लिए
निज नवोढ़ा का स्पर्श,
कामदेव के पुष्पबाण का
लोमहर्षक आकर्ष,
दो चुम्बकों का
उत्तर दक्षिण का
मिलन - क्षण,
रोम - रोम में
विलोड़न स्फुरण,
जीवंत हो उठता
तन- मन का
कण - कण।
उष्ण - शीतल
मसृण - रुक्ष,
अवर्णनीय अनुभूति,
अंतराल के बाद
मिले हुए
जनक का सुत के
ललाट का
सुखद स्पर्श!
शब्दातीत !
सर्वथा शब्दातीत !!
दंपति का
देह से देह का
सम्पूर्ण स्पर्श!
दो देह एक प्राण,
वाणी में नहीं
कोई भी प्रमाण,
समस्त विश्व से
अनजान !
न कहीं कोई ध्वनि
नहीं कोई भान,
मात्र अघोषित चमत्कार,
दो से तीन बनने का
प्रकृति का आविष्कार!
स्पर्श में है
धृतराष्ट्र का
भयंकर भीम
(दु:) भाव !
वीभत्स कुभाव।
बूढ़े का सहारा
उसका सुपूत,
उसके 'शुभम' स्पर्श
में ही बसा है,
जिसे उसकी रुक्ष
अँगुलियों का स्पर्श
बखूबी पहचानता है।
🪴 शुभमस्तु !
०९.०२.२०२२◆१.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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