[मध्वासव,विजया,मदिर, अंगूरी,मन्मथ]
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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❤️ सब में एक❤️
मध्वासव तव नयन का,पीकर उर बेचैन।
गजगामिनि कामिनि शुभे,चैन नहीं दिन-रैन।
छुआ न तेरी देह को,फिर भी मैं मदमत्त।
बाले! मध्वासव प्रिये,करता मन अनुरक्त।।
विजया माँ के चरण में ,नित नत मेरा शीश।
कृपा करें निज भक्त पर,गौरी शिव जगदीश।
जब से तन तेरा छुआ,विजया बना अनंग।
महुआ महका मदन का,उर में उठी तरंग।।
मदिर-मदिर गजगामिनी, मारक तेरी चाल।
जब देखा मम चक्षु ने, बुरा हृदय का हाल।।
दंत - रोग,छाले, दमा,गठिया, कुष्ठ, खराश।
मदिर रोग हरता सभी, करके उर में आश।।
अंगूरी- सी देह में, कटि लचकाती नारि।
हरती उर की शांति को,मुख मयंक अनुहारि।
अंगूरी के स्वाद का, बिना किए ही पान।
देख प्रिया के नयन दो, 'शुभम'करे अनुमान।
कोकिल कूके बाग में,आया मधुर वसंत।
मन्मथ मन मथने लगा,अभी न आए कंत।।
रतिपति मन्मथ देवता,अबला विरहिनि नारि
तंग नहीं इतना करो, बहता दृग से वारि ।।
❤️ एक में सब❤️
अंगूरी विजया सभी,
मदिर बनाएँ देह।
मध्वासव क्यों कम रहे,
मन्मथ मथे स-नेह।।
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मध्वासव = मधु की सुरा।
विजया= दुर्गा, भाँग।
मदिर= मद से भरा, लाल खैर।
अंगूरी =अंगूर निर्मित सुरा, अंगूर की लता के सदृश।
मन्मथ = कामदेव, अत्यंत आकर्षक।
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🪴 शूभमस्तु !
१६.०२.२०२२◆आरोहणं मार्तण्डस्य।
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