मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!🌞 [ गीत ]

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार !©

🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

हे    सूर्य   देव !    हे   ज्योति  पुंज!!

हम     तुमको    शतशः नमन करें।

तुमसे      ही    रक्षित     है  जीवन,

त्रय     ताप     हमारे    शमन करें।।


जड़ -  चेतन     लता    विटप सारे,

रवि    से  ही     जीवन   पाते   हैं।

हे   भानु,    भास्कर,    अर्क , हंस,

हम  हरि   को  अर्घ्य    चढ़ाते  हैं।।

युग-युग  तक ज्योति  दान कर  के,

नभ  में    हे   अरुण!   सदा विचरें।

हे     सूर्य देव !    हे     ज्योति  पुंज!!

हम    तुमको    शतशः   नमन करें।।


फल,  अन्न,   प्रसून,   तुम्हीं  से  हैं,

हीरक,     मोती ,    चाँदी ,  सोना।

अंकुरित   बीज    हे     विश्व मित्र,

हरिताभ   तरणि    से   भू - कोना।।

हर      तमस      मिटाते  अंशुमान,

जो      अंधकार      में   सभी तरें।

हे   सूर्य  देव  !     हे   ज्योति पुंज!!

हम    तुमको   शतशः   नमन करें।।


तुम   जहाँ   वहीं     पर  जीवन   है,

हे  तपन,   दिवाकर ,  भग ,  पतंग।

बहतीं    निशि   दिन   सब सरिताएँ,

यमुना,    कावेरी ,     सिंधु  ,    गंग।।

कारण  दिन  के  दिनमणि दिनकर,

अपना   प्रकाश  प्रभु  कम   न  करें।

हे   सूर्य     देव !    हे   ज्योति पुंज!!

हम   तुमको     शतशः    नमन  करें।


नभ  -  मंडल   में  नित  गमन सदा,

कहलाते      आक       विहंगम तुम।

हर   पाप  -   पुण्य   के    दृष्टा  हो,

आजीवन   उऋण    न    होंगे हम।।

हर     ज्ञान     गूढ़     विज्ञान  तुम्हीं,

हे   सहस   किरण   हम  चरण वरें।

हे   सूर्य   देव !   हे      ज्योति पुंज!!

हम    तुमको    शतशः   नमन  करें।।


सहधर्मिणि       संज्ञा     छाया  तव,

संतति  सुत  यम - शनि   हैं सविता।

प्रद्योतन       तुमसे      प्राची     में,

नित     गाते      हैं   विहंग कविता।।

प्रातः    वेला     में       उषा -  रश्मि,

नित  'शुभम'   रूप   रख  कर विहरें।

हे   सूर्य   देव !     हे    ज्योति   पुंज !!

हम   तुमको     शतशः    नमन  करें।।


🪴 शुभमस्तु !


०८.०२.२०२२◆१.००पतनम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...