■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार !©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!!
हम तुमको शतशः नमन करें।
तुमसे ही रक्षित है जीवन,
त्रय ताप हमारे शमन करें।।
जड़ - चेतन लता विटप सारे,
रवि से ही जीवन पाते हैं।
हे भानु, भास्कर, अर्क , हंस,
हम हरि को अर्घ्य चढ़ाते हैं।।
युग-युग तक ज्योति दान कर के,
नभ में हे अरुण! सदा विचरें।
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!!
हम तुमको शतशः नमन करें।।
फल, अन्न, प्रसून, तुम्हीं से हैं,
हीरक, मोती , चाँदी , सोना।
अंकुरित बीज हे विश्व मित्र,
हरिताभ तरणि से भू - कोना।।
हर तमस मिटाते अंशुमान,
जो अंधकार में सभी तरें।
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!!
हम तुमको शतशः नमन करें।।
तुम जहाँ वहीं पर जीवन है,
हे तपन, दिवाकर , भग , पतंग।
बहतीं निशि दिन सब सरिताएँ,
यमुना, कावेरी , सिंधु , गंग।।
कारण दिन के दिनमणि दिनकर,
अपना प्रकाश प्रभु कम न करें।
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!!
हम तुमको शतशः नमन करें।
नभ - मंडल में नित गमन सदा,
कहलाते आक विहंगम तुम।
हर पाप - पुण्य के दृष्टा हो,
आजीवन उऋण न होंगे हम।।
हर ज्ञान गूढ़ विज्ञान तुम्हीं,
हे सहस किरण हम चरण वरें।
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज!!
हम तुमको शतशः नमन करें।।
सहधर्मिणि संज्ञा छाया तव,
संतति सुत यम - शनि हैं सविता।
प्रद्योतन तुमसे प्राची में,
नित गाते हैं विहंग कविता।।
प्रातः वेला में उषा - रश्मि,
नित 'शुभम' रूप रख कर विहरें।
हे सूर्य देव ! हे ज्योति पुंज !!
हम तुमको शतशः नमन करें।।
🪴 शुभमस्तु !
०८.०२.२०२२◆१.००पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें