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शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गीत कोकिल गा रहा है।
कंत को बुलवा रहा है।।
चूमते हैं सुमन भँवरे,
नारि - नर ललचा रहा है।
ठूठ हरियाने लगे हैं,
सोमरस बरसा रहा है।
शिंशिपा, वट , नीम , पीपल,
के अधर ललिया रहा है।
नाचते गोधूम , सरसों ,
अनल रवि बरपा रहा है।
आम से लिपटीं लताएँ,
मधुक तरु कुचिया रहा है।
बैंगनी कचनार खिलती,
चणक खिलता जा रहा है।
नाचती रख शीश कलशी,
नील तीसी छा रहा है।
गंध मादक खेत वन में,
सब 'शुभम' को भा रहा है।
🪴 शुभमस्तु !
०५.०२.२०२२◆४.०० पतनम
मार्तण्डस्य।
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