गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

कुसुमाकर - सी कामिनी 🌹 [ दोहा ]


[कुसुमाकर,वसंत,पलाश,सेमल, महुआ]

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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        🌻 सब में एक 🌻

कुसुमाकर-सी कामिनी,करे रात अभिसार।

अवगुंठन में सोहती,कल्लोलित कचनार।।

अगवानी आओ करें,कुसुमाकर की मीत।

सुमनों से अलिदल कहे,रंग लाल या पीत।।


यौवन की कलियाँ खिलीं,जागा देह वसंत।

देख रूप  तव सुंदरी,मोहित हैं सुर , संत।।

बूढ़ा पीपल हँस रहा,लाल अधर की कांति।

सरसों नाचे खेत में,शुचि वसंत की शांति।।


रँग ले फागुन आ गया,फूले फूल   पलाश।

होली हँस-हँस खेलता,प्रमन खुला आकाश।

गाल  गुलाबी  हो गए, दृष्टि हो गई    लाल।

नव पलाश उर में खिले,करते कंत धमाल।।


आया नहीं वसंत भी,सेमल - विटप बहार।

एक न पल्लव पेड़ पर,खिलते सुमन हजार।

लगता वन में लग रही,लाल भड़कती आग।

लपटें अंबर में उठीं,सेमल अरुण  सुराग।।


महुआ - सी गदरा रही,कामिनि  तेरी  देह।

महके घर आँगन सभी,मधु का  बरसे  मेह।।

कोकिल कूके बाग में,महुआ की  मधु गंध।

गमक रही वन शैल पर,बनें नहीं नर  अंध।।


        🌻 एक में सब 🌻

महुआ  सेमल महकते,

                     खिलते  सुमन पलाश।

आया कंत वसंत शुचि,

                 कुसुमाकर न निराश।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०२.२०२२◆८.००आरोहणं मार्तण्डस्य।


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