गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

पाटा संस्कृति:पाटाचार 🏕️ [ दोहा ]

 

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 ✍️शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बीकानेरी   महल   के ,बाहर पाटा   एक।

बिछा द्वार के पास ही,बैठे पुरुष  अनेक।।


पाटा  पर बैठे  हुए ,बतियाते  कुछ   लोग।

खेल  ताश के   खेलते,नहीं कर रहे    योग।।


काम न कोई पास हो,पाटा पर  दो - चार।

बैठे  गपियाने  लगे,  पास -पड़ौसी    यार।।


संस्कृति  बीकानेर  की,पाटा पर   आसीन।

हर्ष  मेल  में   मित्रगण,करते बात  नवीन।।


पाटा  संस्कृति -तत्त्व है,करते  सब सम्मान।

पूर्वजों  के कर्म का ,थल यह एक   महान।।


पाटा से   आगे  चले,  वृद्धा सत्तर    साल।

अवगुंठित  होकर  बढ़े,घूँघट बड़ा  निकाल।।


पाटों  पर  बैठे  हुए,हों यदि युवा    अनेक।

फिर भी वृद्धा मान से,सदा निभाती   टेक।।


आजीवन  पाटा  बिना,हुआ न  होता  काम।

जन्म-मृत्यु के मध्य में,शुभ संकुल का नाम।


घर,मंदिर,मुंडन, ब्याह, सब में पाटा एक।

बहु उपयोगी है 'शुभम',करता काम अनेक।।


पाँच औऱ  आधी सदी,की यह प्रथा  महान।

बीकानेरी  ख्याति  का,करता पाटा   गान।।


धर्म,कर्म,ज्योतिष सहित,पंचायत या बंज।

पाटा  पर आसीन हो,खेलें जन   शतरंज।।


🪴शुभमस्तु !


१७.०२.२०२२◆ २.३०पतनम मार्तण्डस्य।

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