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✍️शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मानव - उर को प्यार चाहिए।
हरा - भरा संसार चाहिए।।
स्वर के बिना नहीं है वाणी,
व्यंजन को स्वर -हार चाहिए।
भले न दिखते चर्म - चक्षु से,
सम्बन्धों को तार चाहिए।
बातों से यदि बात न बनती,
अरिदल को असिधार चाहिए।
नाच उठेगी सरसों पीली,
वासंती उपहार चाहिए।
होली नहीं रंग से होती,
रंग - रँगीली नार चाहिए।
गल्प अकेले कब होती है,
समभावी दो - चार चाहिए।
चाहें यदि सम्मान जगत में,
प्रेम भरा व्यवहार चाहिए।
भावों का जब सागर उमड़े ,
सजल'शुभम'उर-द्वार चाहिए।
🪴शुभमस्तु !
२१.०२.२०२२◆६.००आरोहणं मार्तण्डस्य
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