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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ज्ञान की देवी
माँ सरस्वती का अवतरण,
हे माँ ! बोलती
गाती हुई सृष्टि,
कवियों की
काव्य वृष्टि ,
तुम्हारी ही
कृपा दृष्टि।
आज के ही दिन,
हुआ पिता ब्रह्मा के
लोक में शुभ आगमन,
मूक सृष्टि में
गूँज उठी
तुम्हारी मनोरम ध्वनि।
चहचहा उठीं चिड़ियाँ,
भँवरे गुनगुनाने लगे,
वाणी नहीं थी
जिस आनन में
वे बतलाने लगे,
कुछ अधिक ही
कृपा कर दी
नारियों के कंठ पर,
सुरीली माधुर्य पूर्ण
मात्रा में अतिशयता ,
पुरुष के मन
श्रवण के लिए
अत्यधिक प्रियता,
आकर्षण का लासा,
बढ़ने लगी
नारी के रूप
वचनों पर
पुरुष की जिज्ञासा,
शब्दों की भाषा,
पृथक -पृथक कर दी
नारी - पुरुष की परिभाषा,
एक ओर कोकिल कंठ,
उधर खरखराता हुआ
भारी भरकम शंख।
अपना - अपना
स्वर आकर्षण,
गूँज उठे गीत,
संगीत के तराने,
नदियाँ,झरने ,
पर्वत ,सागर
लगे सभी गाने!
मनमाने!
वाणी से ही
परस्पर रिझाने !
कोकिल; कौवा
मयूर; मेढक,
मुर्गा ; नर मानव,
टिटहरी; भौरें ,
सबको मिली वाणी,
अद्भुत कल्याणी।
'शुभम' सत्य शिवकारी
वचन बोलें,
वाणी का महत्त्व तोलें,
वसंत -आगमन ,
चलें करें वंदन,
माँ रसवती सरस्वती का
स्वागत अभिनंदन करें,
कृतार्थता से जी भरें,
वातवरण का
वाणी - प्रदूषण हरें!
🪴 शुभमस्तु !
०३.०२.२०२२◆५.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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