गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

ब्रज कौ वसंत 🌻🌹 [ सवैया ]


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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

वन       बागनु     में       ढूँढ़ि      लियौ,

मोहि  नाहिं    मिलौ  ऋतुकंत पियारौ।

खेतनु     में    सरसों   न   खिली   है,

आम    की    कुंजनु      कूकनु   वारौ।।

फागुन  -     चैत       में      रेत    उड़े,

रँग     गुलाल   कित     विदा बिचारौ।

होरी   में    गोरी     न    भीजि    सकै,

रति  -  काम  कौ  कैसौ  खेलु बिगारौ।।


                        -2-

अगवानी      करौ    चलि    कें   उतकूँ,

जित    आय   रहौ    ऋतुराज हमारौ।

 नर     कोकिल     कूकि      रहौ अमुआं,

अति    शीतल  गर्म  न  मौसम  प्यारौ।।

अँग -  अंगनु   हूक -  सी जागी    सखी,

बिनु   पिय   दिखत   दिवस  में    तारौ।

हों   तौ   चोली    कसी   हू मसोसि  रही,

जिय    कामु    सतावै    हमें बजमारौ।।


                        -3-

लिपटी     लचकाती    लता तरु     सों,

अमुआं   मजबूत  तनौ   ही खड़ौ   है।

श्रुति    बंद      रहें     मुख    मौन   रहै,

पथरा    बनि    कें   निरमोही बड़ौ   है।।

लचकाय       हलाय         रही  करिहा,

नहिं    देखतु  नैन   मही   में गड़ौ    है।

शरमाय   कें      बाँहनु    आमु   कसौ,

शुचि  काम कौ कामु बड़ौ ई कड़ौ   है।।


                        -4-

घर     छोड़ि      चली    सरि गिरि   सों,

अभिसार     की      दीपशिखा  जलती।

दिन -  राति   रुकै    न     डिगै   कबहूँ,

सोवै     न     बढ़े       अपगा  चलती।।

पिय    सिंधु     हिलोरें    भरै हिय   में,

मरजाद        नहीं         छोड़े   इतनी,

भुजबंध   में     बाँधि   लई  कसि    कें,

विलपाय     लई            देही  अपनी।।


                        -5-

कदली    वन   में   मति   जाउ   सखी,

लुकि   बैठौ   है  कुंजनु   में  वनमाली।

दल     पाटल     भीजि      गए  सिगरे,

बजवानी  नहीं   वहि   के कर   ताली।।

रस   चूसि    रहे     अलि   दल  साँवल,

नहिं  मानति  जाय    कें  देखि  सखी।।

पिउ   -   पिउ     करै      सारंग  'शुभम',

मधुमाखी     रहीं     जु  मँडराय  रखी।।


🪴 शुभमस्तु !


०७.०२.२०२२◆ ७.००

पतनम मार्तण्डस्य।


1 टिप्पणी:

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