शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

राधेश्याम पधारे 🦚 [ सायली ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

ब्रज

कुंज में

निशि रम्य में

बज रही

मुरली।


जहाँ 

राधे वहीं

हैं श्याम प्यारे

होते न

न्यारे।


श्याम

नंदगाँव के

बरसाने की राधा

होती लीला

निर्बाधा।


आया

मादक फागुन

रँग रस लाया

राधे, श्याम

सजाया।


  टेर

 वंशिका की

सुन गोपी गोप

त्वरित वन

धाए।


बिना 

राधे के

श्याम आधे से

बँधे धागे -

से।


प्रतीक

प्रेम के

परम् पावन राधे-

श्याम के 

युगल।


🪴 शुभमस्तु !


११.०२.२०२२◆४.३०प.मा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...