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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ब्रज
कुंज में
निशि रम्य में
बज रही
मुरली।
जहाँ
राधे वहीं
हैं श्याम प्यारे
होते न
न्यारे।
श्याम
नंदगाँव के
बरसाने की राधा
होती लीला
निर्बाधा।
आया
मादक फागुन
रँग रस लाया
राधे, श्याम
सजाया।
टेर
वंशिका की
सुन गोपी गोप
त्वरित वन
धाए।
बिना
राधे के
श्याम आधे से
बँधे धागे -
से।
प्रतीक
प्रेम के
परम् पावन राधे-
श्याम के
युगल।
🪴 शुभमस्तु !
११.०२.२०२२◆४.३०प.मा.
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