सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

आया फागुन मास 🎊 [दोहा गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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झोली भर -भर रंग  की,आया फागुन  मास।

सुमनों पर भौंरे  उड़े,लेकर मधु की  आस।।


कोकिल कूके बाग में,विरहिन के  उर  हूक, 

पिया गए  परदेश को,आए घर  क्यों  रास?


सरसों नाचे झूम के,अरहर रह - रह   मौन,

गेहूँ  की  बाली  कहें, महुआ भरे    सुवास।


कलशी सिर धर नाचती, अलसीआलस छोड़

चना -मटर बतिया रहे,हरी- हरी नम घास।


प्रोषितपतिका बाट में,पंथ रही  नित  जोह,

चंदा के सँग चाँदनी,करती तन  - विन्यास।


होली रँग का पर्व है,निशि भर होता फ़ाग,

ढप-ढोलक की तान में,खोया काम -विलास।


झाँझ मंजीरा  झूमते, बतियातीं  करताल,

देवर  से  भाभी  करें, बहुअर्थी   परिहास।


पिचकारी कर ले चली,साली घर  के  द्वार,

जीजाजी रोली मलें,नाक गाल  में   वास।


रँग गुलाल  की धूम में,नहीं रही   पहचान,

चंदन,रंग, अबीर के,सजते शुभ अनुप्रास।


🪴 शुभमस्तु !


१८.०२.२०२२◆१०.००पतनम मार्तण्डस्य।

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