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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
हम सरकारी संत हैं, रहना हमसे दूर।
उपदेशक हम ज्ञान के,करने को मजबूर।।
करने को मजबूर, मलाई आश्वासन की।
तुम्हें चटाते खूब, मिठाई निज भाषन की।।
'शुभम' न हमको पाप,झूठ की हम बीमारी।
पहले अपनी जाति, संत हैं हम सरकारी।।
-2-
कोई भी जाने नहीं, हम सरकारी संत।
अवगुण के भंडार हम,धारण पाप अनंत।।
धारण पाप अनंत, समझना मत हम भोले।
अभिनेताई नित्य, बोलते हैं अनतोले।।
'शुभम' भिड़ेगा कौन,बुद्धि जिसकी हो सोई।
शिक्षा से हम दूर, नहीं समता में कोई।।
-3-
सरकारी तालाब में, मछली हैं भरपूर।
हर छोटी को खा रही, मछली बड़ी अदूर।।
मछली बड़ी अदूर,चाहते हम ही जीना।
पीते रक्त अबाध, तानकर अपना सीना।।
'शुभम'बहाना स्वेद, आम जन की लाचारी।
चाहें धन,पद, मान, संत सारे सरकारी।।
-4-
दिन -दिन तेरे कान में,मंत्र फूँकते संत।
भेजे चुन तालाब में,बहु घड़ियाल सु - दंत।
बहु घड़ियाल सु-दंत,व्यर्थ है पढ़ना सारा।
बिना पढ़े हर साज,मिला है हमको प्यारा।।
'शुभम' त्याग स्कूल,रहो नोटों को गिन- गिन।
निखरे तेरा ओज,मंत्र तू जप ले दिन -दिन।।
-5-
धुले - धुलाये दूध के,सब सरकारी संत।
आदर्शों की लीक पर,चलना ही है पंत।।
चलना ही है पंत,दिखावट विज्ञापन - सी।
चमक-दमक है बाह्य,विधाता के सर्जन-सी
'शुभम' न आते पास,कभी वे बिना बुलाए।
सब सरकारी संत, दूध के धुले - धुलाये।।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०२.२०२२◆३.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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