गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

शिक्षा 🖋️🖋️ [ मुक्तक ]

  

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🖋️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

सीखने     को   रवि सितारे,

चंद्र,   सरिता ,  सिंधु ,  तारे,

रात- दिन   रहते    समर्पित,

ग्रहण कर शिक्षा न प्यारे?1।


विस्तीर्ण  हो  आकाश  जैसा,

अनवरत हो निज श्वास जैसा,

हर  ओर है शिक्षा  तुम्हारे,

बढ़ता  रहे तू  घास  जैसा।2।


सुमन    सिखलाते    हँसाना,

नवल   कलियाँ    मुस्कराना,

पवनवत   गतिशील   रह  तू,

शिक्षा यही जग  हँसाना।3।


कनक में  शिक्षा   सुहागा,

हार   में   शिक्षा    सु- धागा,

गगन में  वह   नीलिमा - सी,

जो न ले वह नर अभागा।4।


शिक्षा बिना नर  श्वान जैसा,

मनुज   वह    हैवान   जैसा,

सत्य  को    पहचान    लेता,

शोर  में  मधु  गान  जैसा।5।


🪴 शूभमस्तु !


१०.०२.२०२२◆१.३० 

पतनमं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...