बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

आया वसंत फूले पलाश ❤️ [ अतुकांतिका]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जंगल में 

खिल उठे पलाश,

डाल -डाल पर 

लाल -लाल 

प्रेम के रँग का हुलास,

अदृश्य है   हरित 

पल्लव दल का उजास।


आ गया वसंत,

छा गया वसंत,

विदा हो गए हैं

शिशिर हेमंत,

हवाएँ भी रँग भरी,

कानों में भरतीं फुरहरी।


पलाश 

 किसी गमले का

 गुलाब नहीं,

वन की धरती

औऱ नभ में  छाया,

नहीं है लालच

प्रेमिका के जूड़े  में

गूँथे जाने का,

किंशुक के लाल

मखमली शोले 

जैसे भू अंबर में

जलते गोले।


होली के रंग,

विपुल औषधियाँ,

इसी टेसू से 

होकर निर्मित 

करते जन कल्याण

ऋतुराज वसंत का

अभिनंदन स्वागत वन में।


आओ 'शुभम'

हम सब भी पलाश

के सुमन बन जाएँ,

जीवन के पतझड़ में

प्रेम का अरुण वर्ण

खिला पाएँ,

धरती से अंबर तक

इस जीवन को महकाएँ।


🪴 शुभमस्तु !


१५.०२.२०२२ ◆ आरोहणम मार्तण्डस्य.

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