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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
नदियों का कलरव है सुमधुर,
चिड़ियों की चहचह है शुभकर,
महक रही है पीली सरसों,
प्रकृति के आकर्षण शुचिकर।
-2-
देख तुम्हें आँखें थम जातीं,
सम्मोहित हो बँध - सी जातीं,
शब्द मौन हो जाते मेरे,
आकर्षण जब तुम बिखरातीं।
-3-
रूप गुनगुनी धूप तुम्हारा,
मम जीवन का सुलभ सहारा,
गरमाती निज आकर्षण से,
घूम रहा था मारा - मारा।
-4-
बँधे हुआ जग आकर्षण से,
खिंचता है हर तृण , तृण से,
सृष्टि न होती बिन आकर्षण,
चमके नारी शुभ भूषण से।
-5-
नर - नारी में चुम्बक ऐसा,
सुमनों में भँवरों के जैसा,
पूरक बन जाता आकर्षण,
'शुभम' न माने ऐसा - वैसा।
-6-
सूरज, सोम, सितारे, अंबर,
सरिता , सागर , अवनी, गिरिवर,
आकर्षण में बाँध रहे नित,
पशु, पक्षी , पौधे , नारी, नर।
-7-
कविता दिव्य प्रभा वाणी की,
आकर्षण मानव प्राणी की,
पशु - पक्षी विहीन कविता से,
कृपा बरसती माँ त्राणी की।
🪴 शुभमस्तु!
०१.०२.२०२२◆११.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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