◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
समय सदा अनुकूल न होता।
जीवन-पथ नित फूल न होता।।
बाधाओं से हार न मानें,
हर बाधा में शूल न होता।
कर्मठता में लक्ष्य छिपा है,
फल कर्मों का धूल न होता।
मुखड़ों से मत धोखा खाना,
हर मुखड़े पर ऊल न होता।
वसन-वसन का पृथक मोल है,
अवगुंठन मुख - झूल न होता।
कितने पादप और लताएँ ,
हर पादप में मूल न होता।
'शुभम' चुभन देने वाला हर,
मानव शूल बबूल न होता।
ऊल =उल्लास।
मुख-झूल= मुख पर झूलता हुआ वस्त्र।
🪴 शुभमस्तु !
२८.०२.२०२२◆८.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें