गुरुवार, 31 अगस्त 2023

कौवे के पंख ● [ अतुकान्तिका ]

 390/2023

      

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कौवे के पंख

काले हों,

यह ठीक है,

उजला हो मन 

यह भी नीक है,

वह आदमी ही क्या

जो बाहर से बगुला हो,

भीतर से कीच है।


कब तक छिपायेगा

ऐ इंसान !

अपने यथार्थ को,

रँगे हुए चीवर तले

झूठे सिद्धार्थ को,

अपने को ठगता तू

क्या मृग मारीच है?


खुल गई है

कलई तेरी

दुनिया के सामने,

लगा है क्यों

अब तू

थर -थर हो काँपने!

आई है समीप 

देख तेरी अब मीच है।


चिलमन को 

उठा -उठा

झाँक रहीं खामियाँ,

बना रखीं

उर में बहु

साँपों ने बांबियाँ,

तरणी तव कर्मों की

भँवर के बीच है।


गरेबाँ झाँक 'शुभम्'

निगाहें झुकाए,

अपने को पहचान अरे

क्यों गज़ब ढाए ?

मानवता के नाम बना

 दानव के नगीच है।


●शुभमस्तु !


31.08.2023◆7.45प०मा०

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