175/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शरद शिशिर हेमंत भी, विदा हुईं धर धीर।
आया अब ऋतुराज है,बहता सुखद समीर।।
पंच तत्त्व से सृष्टि का,निर्मित कण-कण नित्य,
क्षिति नभ पावक वायु सह,सबमें शीतल नीर।
अमराई में बोलता, कोकिल मधुरिम बोल,
करे प्रतीक्षा आम की, लाल चोंच का कीर।
गङ्गा - यमुना में बहे, अविरल निर्मल धार,
नर - नारी बढ़ने लगे, करें नहान सुतीर।
अवगाहन जल में करें, नर - नारी जन बाल,
नहा रहीं वे लाज वश,सुरसरि धार सचीर।
जो आया जाता वही, नियम यही अनिवार्य,
नर - नारी जो भी यहाँ,निर्धन या कि अमीर।
'शुभम्' धरा पर फूँक कर,कदम रखें सब लोग,
अपने को समझें नहीं, कोई हलधर वीर।
शुभमस्तु !
15.04.2024 ●7.00आ०मा०
सोमवार, 15 अप्रैल 2024
बहता सुखद समीर [ दोहा गीतिका ]
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