सोमवार, 15 अप्रैल 2024

बहता सुखद समीर [ दोहा गीतिका ]

 175/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


शरद  शिशिर  हेमंत  भी, विदा हुईं धर  धीर।

आया अब ऋतुराज है,बहता  सुखद समीर।।


पंच तत्त्व से सृष्टि  का,निर्मित कण-कण नित्य,

क्षिति नभ पावक वायु सह,सबमें शीतल नीर।


अमराई   में  बोलता, कोकिल मधुरिम    बोल,

करे  प्रतीक्षा आम  की, लाल चोंच का   कीर।


गङ्गा - यमुना  में   बहे, अविरल  निर्मल  धार,

नर - नारी   बढ़ने   लगे,  करें  नहान सुतीर।


अवगाहन  जल  में करें, नर - नारी जन  बाल,

नहा  रहीं  वे  लाज  वश,सुरसरि धार  सचीर।


जो  आया  जाता  वही, नियम यही अनिवार्य,

नर - नारी जो भी  यहाँ,निर्धन या कि अमीर।


'शुभम्' धरा पर फूँक कर,कदम रखें सब लोग,

अपने  को   समझें   नहीं,  कोई हलधर   वीर।


शुभमस्तु !


15.04.2024 ●7.00आ०मा०

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