मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

मोबाइल ऑफ:शांति ऑन [ व्यंग्य ]

 180/2024

     


©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


        मेरे मित्रों और मोबाइलियों को प्रायः मुझसे यह शिकायत रहती है कि जब भी  फुनफनाते हैं,आपका मोबाइल बन्द पाते हैं।अंततः आप बिना मोबाइल मोबिल्टी के कैसे रह पाते हैं।इस शिकायत पर वे एक ही नपा -  तुला उत्तर पाते हैं,कि हम ज्यादा कहने - सुनने में ज्यादा यक़ीन नहीं लाते हैं।इसलिए आकाशीय महलों में भरपूर घूम -फिर पाते हैं।अब आपकी तरह तो हैं नहीं कि हरदम फुनफुनाते रहें।दो इधर की और चार उधर की सुनें और आपको सुनाते रहें।भला और भी शै हैं बंदे के पास फुनफनाने के सिवा। एक फोन ही नहीं हमारे दर्दों की एकमात्र दवा।अरे भई! ये मोबाइल भले ही एक मशीन है,तो उसे भी तो कुछ आराम की ज़रूरत है ! ये तो नहीं कि घंटों मोबलाते रहो और इसकी उसकी चुगली करके आपको रस दिलाते रहो।

आपकी यह शिकायत भी उचित नहीं लगती कि फोन बंद क्यों, फोन हमारा है इसलिए बंद यों।यदि आपको हमसे ही ज्यादा फुनफुनाना है तो एक मोबाइल भी उधर से  इधर को पहुँचाना है।आप तो ऐसे फ़रमा रहे हैं,जैसे आपकी ही प्रोपर्टी को हम लिए जा रहे हैं।फोन में आपकी कोई साझेदारी तो है नहीं ,जो इतने जेठ वैशाख हुए जा रहे हैं।शायद यह कहावत भी तभी बनी होगी कि उलटा चोर कोतवाल को डाँटे।जो आप उलाहना भरे चलाते हैं चाँटे।बेशक आपके ये बोल हमें लगते हैं काँटे।ये वो मोबाइल नहीं जो वोट बढ़ाने के नाम पर नेताओं ने  जनता में बाँटे।

आज के जमाने को फुनफुनाने का यह एक ऐसा असाध्य रोग लगा है,जिसके समक्ष किसी का कोई नहीं सगा है।आप सभी देखते होंगे,देखते क्या करते भी होंगे तो यह कोई विश्व का आठवाँ अजूबा तो हो नहीं गया।मोटर साइकिल पर दनदनाते हुए चले जा रहे हैं,आँखें, कान और सौ फीसद ध्यान मोबाइल में लगाये हुए कान और कंधे के बीच चाँपे हुए।अब जो होना है ,सो हो ले। किन्तु क्या क्या वे कभी चल सकेंगे हौले - हौले। क्या बताएँ, बेचारे व्यस्त ही इतने हैं ,मानो किसी जनपद के कलक्टर ही हों।नीचे उतर कर या दो मिनट खड़े होकर बात करने की उन्हें फुरसत कहाँ? जिम्मेदारियों का बोझा ही इतना गुरुतर है कि तसल्ली से बात करने का अवकाश कहाँ?

एक बार मैं निजी वाहन से हरिद्वार जा रहा था।  सुबह लगभग सात बजे का समय था । तो क्या देखता हूँ कि एटा के पास अचानक मेरी दृष्टि एक खुले खेत में पड़ गई ,तो क्या देखा कि अवगुंठन आबद्ध एक युवा महिला खेत में दीर्घ शंका निवारण के साथ ही फोन पर फुनफुना रही थी। ऐसे दृश्यों पर अनायास दृष्टि चली ही जाती है। आँखें हैं इसलिए वे सब कुछ देख लेती हैं और अंदर तक दिखवा भी देती हैं।यही नहीं कुछ बेहद भद्र महिलाओं को मोबाइल पर फुर्सत के वक्त घंटों फुनफुनाने का रोग है और भयंकर रूप से है। यही रोग कुछ पुरुषों में भी है। वे भी इस रोग से अछूते नहीं हैं।चौका -चूल्हे से लेकर घर-घूरा और सास की बुराई रस ले लेकर की जाती है ,तो पुरुष आलू और टमाटर के भाव और कोल्ड स्टोर में ठंडाई पाते रहते हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो जहाँ मोबाइल जीवन की आवश्यकता है ,वहीं वह एक लाइलाज बीमारी के रूप में कैंसर बन कर उभरा है।वह एक ओर वरदान है तो दूसरी ओर महा अभिशाप भी बन चुका है। नई पीढ़ी तो इस रोग से पूरी तरह डूब ही चुकी है।ऑन लाइन क्लास के नाम पर वे कहाँ- कहाँ लाइन मार रहे हैं ,यह कोई नहीं जानता। माँ- बाप के लाड़ले और प्रिय परियाँ  कैसे - कैसे अपने भविष्य को धोखा दे रहे हैं,यह किसी से छिपा नहीं है।कामुकता और अश्लीलता का चलता- फिरता ट्रेनिंग सेंटर बन गया है मोबाइल।अनिद्रा ,प्रेम रोग,देह नाश,स्वप्न दोष, हृदय रोग,ओज नाश,यौवन नाश आदि असाध्य रोगों की शिकार नई पीढ़ी अपने भविष्य को स्वयं पलीता लगा रही है।इसलिए मोबाइल ऑफ होगा तभी आपको सुख शांति और आंनद की प्राप्ति सुलभ होगी ,वरना जो हो रहा है ;उसे रोकने वाला कोई नहीं है।वर्तमान नई पीढ़ी तो अपने सिर को स्वयं कुल्हाड़ी पर दे मार रही है,है कोई जो युवा ,यौवन और युवा शक्ति के पतन को रोक सके?विराम लगा सके?


शुभमस्तु !


23.04.2024●10.15आ०मा०

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