169/2024
समांत :एरा
पदांत :अपदांत
मात्राभार:24.
मात्रा पतन:शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बदल रहा परिवेश, जगत हिंसा ने घेरा।
चढ़ा देश पर देश, कह रहा मेरा -मेरा।।
भूले मानववाद, प्रेम करुणा सब खोए,
है काला घननाद, गगन में सघन अँधेरा।
राजनीति का खेल, मात-शह में रत दुनिया,
डाले हुए नकेल, मनुज कोल्हू में पेरा।
आस्तीन के साँप, रात -दिन डसते जन को,
मनुज रहा है काँप, नहीं है निकट सवेरा।
'मैं ही सबसे श्रेष्ठ', अहं में डूबे शासक,
बनते सबसे ज्येष्ठ, मेष दल बीच बघेरा।
नीति न कोई धर्म, शस्त्र बल सारी ताकत,
शेष न दृग में शर्म,कहाँ से मिले उजेरा।
'शुभम्' बाँटना ज्ञान,नहीं चलना सत पथ पर,
चला रहे अभियान, समय का कैसा फेरा!
शुभमस्तु !
08.04.2024●7.30आ०मा०
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