176/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चलो गाँव की
ओर चलें हम
सुखद शांत परिवेश।
आम नीम की
शीतल छाया
कच्ची सड़कें धूल।
बैलगाड़ियाँ
गल्ला ढोतीं
उन्हें न जाना भूल।।
कहीं घूमते
मुर्गा- मुर्गी
रंग-बिरंगे वेश।
व्यस्त काज में
सब नर - नारी
सिर पर गोबर लाद।
उपले उन्हें
थापने नित ही
श्वान कर रहे नाद।।
कच्चे - पक्के
बने घरों में
करते नेह निवेश।
कहीं नदी का
कलरव गूँजे
शीतल निर्मल धार।
अमराई में
कोकिल कूके
लुटा रही यों प्यार।।
जीते वृद्ध
शांतिमय जीवन
पके आयुवश केश।
शुभमस्तु !
16.04.2024 ●6.30आ०मा०
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