182/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आरति करूँ कमल की अम्मा।
लगा तुम्हारी शत परिकम्मा।।
जिस पर वास लक्ष्मी करतीं।
पंकज चरण कमल पर धरतीं।।
भक्त नाचते छम्मा - छम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।
कहते तुममें महक बड़ी है।
शुभ पूजन की आज घड़ी है।।
तुम्हें चाहता सारा उम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
नाला - नाली में तुम पाओ।
निज भक्तों को खूब रिझाओ।।
बन भक्तों का प्यारा सुम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
कब तुम गर्भ धरोगी देवी।
पूछ रहे तव पद रज सेवी।।
रहती हो तुम क्यों नित गुम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
धूप - दीप मैं नित्य जलाऊँ।
अडिग भक्त तेरा कहलाऊँ।।
बनूँ एकमात्र तव रम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
लगे भजन में कोटि - कोटि जन।
तुमसे लगा दिमाग हृदय तन।।
बजते डफ - ढोलक ध्वनि धम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
'शुभम्' तुम्हीं सत्तासन लातीं।
दलदल में दुश्मन फँसवातीं।।
गड़ते जाते बकरे दुम्मा।
आरति करूँ कमल की अम्मा।।
*उम्मा=राष्ट्र।
*सुम्मा= किसी विशेष क्षेत्र की कार्य शृंखला को संश्लेषित करना।
*रम्मा=बरछेबाज।
शुभमस्तु !
23.04.2024●9.45प.मा.
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