मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

कैसे सुधरे देश [ गीतिका ]

 179/2024

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बनें  देश  के भक्त, सहज  पहचान  नहीं।

धन  में  ही  आसक्त, हमें  क्या  ज्ञान नहीं??


बस   कुर्सी  से  मोह, नहीं  जन  की सेवा,

निर्धन   से  है  द्रोह,  करें  कुछ  मान नहीं।


मतमंगे  बन   वोट,  माँगते  घर -  घर   वे,

जन  को   देते  चोट, बात  पर कान नहीं।


नारों   से  बस  प्रेम, लुभाते   जनता को,

कुशल  न  पूछें  क्षेम, जहाँ घर-छान नहीं।


मंदिर  में  जा  आप,   करें  दर्शन  प्रभु  का,

नेताओं   का  ताप,    सह्य    आसान  नहीं।


अपना   ही     उद्धार,    चाहते    सब   नेता,

औरों    को   दुत्कार,  देश   का  गान   नहीं।


कैसे   सुधरे    देश,   होलिका   कीचड़    की,

दूषित   है  परिवेश , 'शुभम्'   अनजान  नहीं।


शुभमस्तु !


22.04.2024●6.45आ०मा०

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